मुझे अपने अनुभव के आधार पर ऐसा महसूस हुआ की किसी भी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए दो भावनाओं का सृजन होता है-
(१) एक तो सामने वाला सुनना चाहता है वह उसी को व्यक्त करता है ।
(२) दूसरी ऐसी भावनाएं उमड़ती हैं जो उसके अन्दर तो चलाती है परन्तु सामाजिक मान्यताओं और परिस्थितियों के कारण वह उसे व्यक्त नहीं कर पाता ।
ये है मेरे विचार, आप बताएं क्या है इस सन्दर्भ में आपके विचार ?
बुधवार, 6 अक्टूबर 2010
मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010
अहिंसा की समझ
सबसे पहला विचार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अहिंसा के सन्दर्भ में -
अहिंसा हमारे समाज की एकरूपी अवधारना के रूप में दर्ज है । हमसे तमाम लोगों ने इस शब्द से जुड़े एतिहासिक और राजनितिक भ्रम को आत्मसात कर लिया है लेकिन इसके अध्यात्मिक आयाम को छोड़ दिया है । अहिंसा की हमारी राजनितिक समझ निजी या राष्ट्रीय आज़ादी के शांतिपूर्ण विरोध से संवंधित है ।
वास्तव में अहिंसक कार्यवाई के अगुवा महात्मा गांधी अहिंसा की अध्यात्मिक अवधारना से प्रेरित थे । इसे पश्चिम में महज अहिंसा के एकांगी अर्थ के तौर पर गलत समझ लिया गया है । अहिंसा के राजनितिक आयाम से यह अर्थ लिया जाता है कि यह आमतौर पर किसी मकसद के शांतिपूर्ण प्रतिरोध की एक रणनीति है और इस रणनीति के लिए योजना, अनुशासन व् प्रशिक्षण में भारी सावधानी की जरूरत है !
आप बताएं आपके क्या विचार हैं ?
अहिंसा हमारे समाज की एकरूपी अवधारना के रूप में दर्ज है । हमसे तमाम लोगों ने इस शब्द से जुड़े एतिहासिक और राजनितिक भ्रम को आत्मसात कर लिया है लेकिन इसके अध्यात्मिक आयाम को छोड़ दिया है । अहिंसा की हमारी राजनितिक समझ निजी या राष्ट्रीय आज़ादी के शांतिपूर्ण विरोध से संवंधित है ।
वास्तव में अहिंसक कार्यवाई के अगुवा महात्मा गांधी अहिंसा की अध्यात्मिक अवधारना से प्रेरित थे । इसे पश्चिम में महज अहिंसा के एकांगी अर्थ के तौर पर गलत समझ लिया गया है । अहिंसा के राजनितिक आयाम से यह अर्थ लिया जाता है कि यह आमतौर पर किसी मकसद के शांतिपूर्ण प्रतिरोध की एक रणनीति है और इस रणनीति के लिए योजना, अनुशासन व् प्रशिक्षण में भारी सावधानी की जरूरत है !
आप बताएं आपके क्या विचार हैं ?
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